लचीले सकुचीले सरसिले सुरमीले से कटीले औ
कुटीले चटकीले और मटकीले हैं.
रूप के लुभिले, कजरिले उन्सिले, बर्छिले, तिर्छिले
से कसिले और गरसिले हैं.
ललित किशोरी, झमकीले, गर्वीले, मानो अति ही
रसीले, चमकीले और रंगीले हैं.
छबीले, छकीले, अस्नील से नशीले आली नैना नंदलाल
के नाचिले और नुकीले हैं.
कुछ पुराने अभिलेखों के बीच एक डायरी मिली. एक पथिक की डायरी, "पथिक" मेरे बाबा का उपनाम था, मेरे बाबा स्वर्गीय श्री अवंतिका प्रसाद श्रीवास्तव की शैली और भाषा आजकल की कविताओं से थोड़ी अलग है, जिसमे छंद और मात्राओं का पूर्ण उपयोग किया गया है. लिखने की लगन शायद मुझे उनसे ही विरासत में मिली है मैंने बचपन में कई बार बाबा को अपनी लिखी कविता गाते हुए सुना, और शायद तभी से शब्दों से खेलने की ये धुन मुझमे भी आई, पेश है उनकी लिखी कुछ कवितायें आशा है आपको पसंद आएँगी
Sunday, September 4, 2011
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औपन्यासिक ब्लॉगिया कविताओं के भीड़ में इस ब्लॉग को पाकर अच्छा लगा, पथिक जी की रचनाओं का इंतजार रहेगा.
ReplyDeleteइस ब्लॉग को फालो कर रहे हैं अब फीड रीडर से नये पोस्टों को पढ़ते रृहेंगें.
अपने बाबा कि रचनाएँ पढवाने का शुक्रिया ..बहुत सुन्दर प्रस्तुति है
ReplyDeleteकृपया टिप्पणी बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटाएँ
सुन्दर व अनुपम रचना
ReplyDeleteबाबा कि रचनाएँ पढवाने का शुक्रिया
ReplyDeleteनयनों की इतनी सारी उपमाएं ....बहुत ही अदभुद.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा पढ़ कर...खार तौर पर इसलिए कि वो आपके बाबा की लिखी हुई हैं...आपको विरासत में बहुत अनमोल चीज़ मिली है शेफाली.
प्रोत्साहन के लिए आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteपरमानन्ददायकं !
ReplyDeleteपरमानन्ददयकम !
ReplyDeleteभई वाह !!
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