जाता बन नन्द निकुंज विश्व मेरे लिए
उमा निवास को भी कुटिया लजाती तो
आशा की मुकलित कलि सवेग खिल जाती,
सुरमित वायु सुख सदन बहती तो
होता निहाल एक बार जो निहार पता,
मुक्ति की भी लालसा लाभी ना रह जाती तो
आते एक बार देव भाग्य फिर जाते मेरे,
जीवन की साधना समस्त मिट जाती तो

कुछ पुराने अभिलेखों के बीच एक डायरी मिली. एक पथिक की डायरी, "पथिक" मेरे बाबा का उपनाम था, मेरे बाबा स्वर्गीय श्री अवंतिका प्रसाद श्रीवास्तव की शैली और भाषा आजकल की कविताओं से थोड़ी अलग है, जिसमे छंद और मात्राओं का पूर्ण उपयोग किया गया है. लिखने की लगन शायद मुझे उनसे ही विरासत में मिली है मैंने बचपन में कई बार बाबा को अपनी लिखी कविता गाते हुए सुना, और शायद तभी से शब्दों से खेलने की ये धुन मुझमे भी आई, पेश है उनकी लिखी कुछ कवितायें आशा है आपको पसंद आएँगी
Wednesday, September 14, 2011
Sunday, September 4, 2011
नयन
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